Friday 9 May 2008

कपडो का अलग अंदाज


कपडे हम सभी पहनते है. सभी को अच्छा लगता है अलग अलग पहनावा करना.जिस तरह फॅशन की डिमांड हो उस तरह का पहराव करना कईयों को भाता भी है.पहराव करना अलग बात है लेकिन आजकल हम रास्ते पर चलते है तो सडक पर लगे बैनर , पार्टीयों के झंडे, लंबे से लंबे होर्डींग्ज का भरमार लगी होती है जिसे बनाने के लिए पार्टी लाखो रूपये खर्च कर रही है .अपने अपने पार्टीयों का झंडा बुलंद करने के लिए कपडो का भरमार रास्तों पर लगा दे रही है, क्या इसे झंडे और बॅनर के जरीए शक्तीप्रदर्शन नहीं कहा जा सकता है, आम इंसान को इसके बारे में शायद पता नही होगा, उसे इससे क्या लेना देना होगा. बस कपडे पर लिखे अक्षरों को पढना या देखकर आगे बढना यही उसकी आदत बन गयी है. झंडो और पार्टी की प्रसिद्धि के लिए कपडे का गलत इस्तेमाल करना कहाँ तक उचित होगा, जबकि कई ऐसे लोग है जिनको तन ढकने के लिए भी कपडे नसीब नही होते.क्या राजनितीक पार्टीयों के प्रमुखों को इस बारे में विचार नहीं करना चाहिए. वे इसे उचित नहां समझते . अपने शक्तीप्रदर्शन करने की होड में लगी राजनितीक पार्टीयां शहर की खूबूसूरती तो बिगाड ही रही है लेकीन अपने कर्तव्य के प्रति भी जागरूक नही है, मै भी आम इंसान की तरह इन कपडों की हो रही बर्बादी को चुपचाप दख रही हूं आप ही की तरह.

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