Wednesday 21 May 2008

सावन आयो रे....


आज सुबह सुबह ऑफिस जाने के लिए हमेशा की तरह निकल पडी, रात भर गर्मी की वजह से फ्रेशनेस बिल्कुल नही थी, मारे गरमी के गुस्सा, चिडचिडपना सीमाएं लांघ रही थी। जबसे गरमी का मौसम शुरू हुआ है रोज बस यही हाल होता है। बस में बैठने के बाद एहसास हुआ कि आज तो बादल घिर आए है, कहीं न कही तो बारीश की बौछारे जरूर गिरी होंगी, जैसे तैसे स्टेशन पहुंची, ट्रेन में प्रवेश भी कर लिया । सुबह सुबह आमतौर पर महिलाए थोडासा कम ही बातें करती है। कई सारी महिलाएं झपकियां ले रही थी,कोई पढ रही थी तो कोई बाहर का नजारा देखने में मशगुल थी। मेरे सामने के बेंच पर एक छात्रा और एक महिला झपकिया ले रही थी। आज थोडी गरमी कम होने का एहसास हुआ तभी खिडकी से बारीश की एक बुंद ने चेहरे को छुआ। बाहर झांक कर देखा तो हल्की सी बूदा बांदी हो रही थी । मन प्रफुल्लीत हो उठा, मेरे सामने झपकियां लेने वाली छात्रा मन ही मन मुस्कुराने लगी, महिला ने मेरी और देखकर एक स्मित हास्य किया । बारीश की कुछ बूदों ने सारे तनाव को उडन छू कर दिया। और आंखो के सामने ऐश्वर्या डोलने लगी... बरसो रे मेघा मेघा.... और मुड हो गया एकदम फ्रेश.....

1 comment:

Rajiv Ranjan Singh said...

बहुत बढिया ,,, सचमुच