Saturday 10 May 2008

सहकर्मियों का ओछापन


पुरूष सहकर्मियों के ओछेपन की बातें तो सुनी थी , कई बार अनुभव भी हुआ. कई सारे पुरूषो में एक अकेली महिला को बेचारी समझने का ओछापन सहकर्मी करते रहते है। अकेली महिला क्या कर सकती है, तो सब मिलकर उसे चुप कराने के प्रयास में लगे रहते है। महिला के आने जाने का समय, उनका रहन सहन, किन किन लोगों के साथ उसका उठना बैठना होता है इन सब बातों पर कौऐ जैसी नजर वे गडाए रहते है। मुँह में राम बगल में छुरी रखकर बातें करने वाले यह सहकर्मी, महिला सहकारी से हमदर्दी जताने से भी नही चुंकते। दरअसल बेचारे तो वो खुद ही होते है, महिला से प्रतियोगिता करना उनको हजम नही होता। काम के प्रति लापरवाही, चायपानी के नाम पर घंटो कौंटिन में बीताना उनकी कमजोरी हो जाती है । दरअसल ये बाते सभी लोगों पर लागू नही होती लेकिन पुरूष मानषिकता का असर नये मित्र बनाते वक्त जरूर पडता है। पर एक अच्छा मित्र ओछी मानसिकता वाले पुरूषों की कुटनीति को जड से उखाडने में जरूर मददगार साबित होता है। कई महिला कर्मियों को इस बात का अनुभव जरूर आता होगा। बेहतर होगा अपने आप को इतना सक्षम बनाना होगा कि इनको एक ना एक दिन मुँह की जरूर खानी पडे।

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